गाजीपुर, उत्तर प्रदेश। वाराणसी के गंगाघाट पर एक साथ सात चिताएं जल रहीं थी।मरने वालों में एक विधायक भी थे। यह खबर लोगों तक पहुंची तो कई जनपदों में तनावपूर्ण माहौल बन गया और हत्यारों को फांसी की मांग को लेकर न केवल भीड़ बल्कि यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह भी धरने पर बैठ गए। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने न्याय यात्रा को हरी झंडी दिखाकर केंद्र व राज्य सरकार में कई सवाल खड़े कर दिए। तब कहीं जाकर मामले की जांच सीबीआई से कराई गई और 14 साल बाद भी नतीजा सिफर ही रहा। गाजीपुर जनपद की मोहम्मदाबाद विधानसभा सदस्य कृष्णानंद राय 29 नवंबर 2005 को भांवरकोल विकासक्षेत्र के गांव सियाड़ी में क्रिकेट टूर्नामेंट का शुभारंभ करके घर वापस आ रहे थे। विधायक का काफिला बसनिया चट्टी पर पहुंचा तो पहले से घात लगाए बैठे बदमाशों ने कार पर हमला कर दिया। एकके 47 जैसे आधुनिक हथियारों से एक के बाद एक 500 गोलियां चलाईं। गोलियां चलने से विधायक कृष्णानंद राय समेत सात लोग घटनास्थल पर दम तोड़ देते हैं। इसके बाद न केवल गाजीपुर बल्कि आजमगढ़, वाराणसी, मउ समेत कई हिस्सों में तनाव फैल जाता है। बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आते हैं और सीबीआई के माध्यम से हत्याकांड की जांच कराई जाती है। विधायक कृष्णानंद राय के परिवार की ओर से बाहुवली नेता मुख्तार अंसारी, उसके भाई अफजाल अंसारी, एजाजुल हक, सुनील माहेश्वरी, राकेश पांडेय, मंसूर अंसारी, मुन्ना बजरंगी, रामू मल्लाह पर एफआईआर दर्ज होती है, लेकिन 14 वर्षों के प्रयास के बाद भी हत्यारोपियों के विरुद्ध कोई सुबूत नहीं मिलता और सभी 2019 में इस केस से बाइज्जतबरी हो जाते हैं।